जीवन की उत्पति अस्तित्व व विकास हेतु आवश्यक तथा अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध कराने वाला ‘पृथ्वी‘ ब्रह्मांड का अब तक का एकमात्र ज्ञात ग्रह है। जीवन की उपस्थिति ही ब्रह्मांड में पृथ्वी की विशिष्टता संस्थापित करती है। पर्यावरण अथवा तकनीकी शुद्ध रूप में प्राकृतिक पर्यावरण सभी सजीवों तथा निर्जिवों का वह संयोजन है जो पृथ्वी पर विद्यमान है। सजीव जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी व निर्जिव जैसे जल, वायु, मृदा, तापमान आदि प्राकृतिक पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटक हैं। पृथ्वी का पर्यावरण पिछले वर्षों में एक चिंता का विषय बन कर उभरा है। निरंतर हो रहा प्रदूषण इसका मुख्य कारण है। प्राकृतिक पर्यावरण एक संतुलित, संरचित, जटिल तथा सक्रिय तन्त्र व प्रक्रिया है। पर्यावरण प्रदूषण इसकी संरचना में आने वाला वह हानिकारक परिवर्तन है जो इसके दूसरे घटकों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है अथवा उनके गुणधर्मों को कम कर देता है। मानव की विकास करने की प्रवृति उसे उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपभोग हेतु विवश करती है। यही अति-उपभोग परिणित होकर ‘तितली प्रभाव’ (Butterfly effect) को जन्म देता है जिसमें किसी विशाल जटिल व सक्रिय तन्त्र के एक भाग में आने वाला परिवर्तन, जो कि प्रारम्भ में लघु व अप्रभावी प्रतीत होता है, प्रभावों की एक ऐसी श्रृखंला का निर्माण करता है जो वृहद स्तर के अप्रत्याशित परिणामों में बदल जाती है। वर्तमान समय में पर्यावरण के प्रत्येक घटक में मानवीय हस्तक्षेप स्पष्ट है। नदियाँ, झील, तालाब, आदि ना केवल प्रदूषित होकर उपयोग योग्य नहीं रहे हैं वरन् वे विलुप्त भी हो रहे है। ग्रीन-हाउस गैसें- जलवाष्प, कार्बन-डाई-आक्साइड, मिथेन, नाईट्रस-आक्साइड तथा ओजोन की सान्द्रता वातावरण में बढ़ रही है। सयुंक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के राष्ट्रों को ‘कार्बन उत्सर्जन’ कम करने का सन्देश दिया है। भारी धातुओं से युक्त औद्योगिक प्रदूषक कृषि योग्य भूमि को बंजर व पीने योग्य पानी को विषैला बना रहे हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में स्थित ‘ओजोन परत’ जो पृथ्वी पर जीवनके लिये आवश्यक है, खत्म होने की कगार पर है। वाहन से निकले ‘सस्पैंडिड पारटीकुलेट मैटर‘ सर्दियों में के साथ ‘धुंध’ का निर्माण करते है, जो विशेषत: महानगर वासियों में विभिन्न सांस सम्बन्धी रोग उत्पन्न करते हैं।
पृथ्वी का वन-क्षेत्र तेजी से घट रहा है। जंगल और जल-संसाधनों के खत्म होने के कारण वन्य व जलीय जीव जन्तुओं व पेड़-पौधों की प्रजातियाँ अत्यंत ही अप्रत्याशित दर से लुप्त होती जा रही है। पर्यावरण-क्षरण जारी है तथा इसी क्षरण को रोकने की प्रक्रिया व सबंधित क्रिया कलापों को ‘पर्यावरण संरक्षण‘ का नाम दिया गया है। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान वृद्धि, पर्यावरण प्रदूषण, जैव-विविधता का नष्ट होना आदि परस्पर संबंधित विषय हैं। पर्यावरण के निरंतर क्षय को रोकने तथा इसके कारण भविष्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए वैश्विक व राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार की रणनीतियाँ तैयार व कार्यान्वित की जा रही हैं। पर्यावरण प्रदूषण,जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग, वर्तमान समय में ‘ग्लैमराईज्ड बजवर्ड’ बन गऐ हैं। जो भी इनकी बात करता है वह बुद्धिजीवी व आधुनिक आंका जाता है। तथा वे लोग जिन्होनें पर्यावरण के नुकसान के अतिरिक्त कुछ नहीं किया है, भी इन विषयों पर बहस करते हैं।
5 जून सन् 1972 को ‘युनायटैड नेशंस कान्फ्रैन्स आन हयूमैन एनवायरनमैण्ट‘ (United Nations Conference on Human Environment) आरम्भ हुई थी तथा इसी तिथि को ही सन् 1973 में प्रथम विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रत्येक वर्ष को किसी ना किसी विशेष रूप में मनाऐ जाने की परंपरा है। वर्ष 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष घोषित किया है। वर्ष 2013 को अंतर्राष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष घोषित किया गया था। वर्ष 2011 को अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष घोषित किया गया था। 2011 से 2020 का दशक भी ‘जैव- विविधता दशक’ के रूप में मनाया जा रहा है। जैव विविधता का क्षरण गम्भीर चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि मानवीय आवश्यकताएं व पसंद विविध तथा परिवर्तनशील है। पेड़, पशु अथवा सूक्ष्मजीवों की एक प्रजाति मनुष्य की सभी आवश्यकताएं पूर्ण करने में अक्षम हैं। विभिन्न प्रकार के सजीव मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं तथा यह मनुष्य के लिए जैव-विविधता की महत्वपूर्णता को रेखांकित करता है। यदि वर्तमान दर पर पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ विलुप्त होती रही तो सम्पूर्ण मानवता सकंट में पड़ जाएगी। उपरोक्त सभी कारणों से ही ‘जैव विविधता’ एक सघन चिंतन का विषय बनी हुई है।
15 जुलाई 2009 को पाकिस्तान में 300 लोगों के समूह ने 541176 वृक्ष लगाकर ‘गिनीज वल्र्ड रिकार्ड‘ बनाया। यह किसी भी मानव समुह द्वारा 24 घंटे में लगाए गए सर्वाधिक वृक्षों की संख्या है। इसी प्रकार से फिलीपिन्स में 24 फरवरी 2011 को 7000 लोगों ने, 15 मिनट में 64096 वृक्ष लगाए। यह एकसाथ लगाए गए सर्वाधिक वृक्षों के विश्व कीर्तिमान के रूप में ‘गिनीज बुक‘ में दर्ज है। 5 जून सन् 1988 को भारत सरकार द्वारा खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे मूल्य की डाक टिकट जारी की गई। मरूस्थलीय पारिस्थितीकी में खेजड़ी वृक्ष की उपयोगिता एवं महत्वपूर्णता इससे सिद्ध होती है। जर्मन रसायनविद् हैंस वोन पैकमैन ने सन् 1898 में पोलिथीन की खोज की थी तथा यह उत्पाद आधुनिक विश्व को दुर्घटना की ओर ही ले जा रहा है। लेकिन अब इसको बन्द करने की आवश्यकता है। इस प्रतिबन्ध को और अधिक कड़ाई से लागू करने तथा पॉलिथीन के विकल्प उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ तथा ‘इन्टरनेशनल यूनियन फार द कंजरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिर्सोसिज‘ (International Union for the Conservation of Nature and Natural Resources) (आई. यु. सी. एन.) को जैव विविधता व पर्यावरण संरक्षण में काम कर रहे हैं।
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