Centre for Science and Environment (विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र)

Centre for Science and Environment(विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र) नई दिल्ली स्थित एक गैरलाभकारी और लोकहित में शोध और सलाह देने वाला संस्थान है, जो वर्ष 1980 नें स्थापित हुआ था। संस्थान भारत से संबंधित पर्यावरणीय विकास जैसे मुद्दे पर थिंक टैंक की तरह काम करता है। जो गरीबी सुधार और व्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, सुन्दरवन के संरक्षण पर आधारित सलाह प्रदान करता है। साथ ही साथ पहले से संचालित नीतियों के और बेहतर संचालन हेतु सुझाव उपलब्ध कराता हैै। संस्था किसी भी समस्या का जानकारी आधारित समाधान देता है। जो प्रमाणिक व वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होते हैं।

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http://www.cseindia.org

Environmentalist Foundation of India(भारतीय पर्यावरणविद् फाउण्डेशन)

Environmentalist Foundation of India (भारतीय पर्यावरणविद् फाउण्डेशन)  एक पर्यावरण संरक्षण समूह है, जो चेन्नै, हैदराबाद, पाण्डिचेरी, कोयम्बटूर में सक्रिय है। जो वन्यजीव संरक्षण और वननिवासियों के पुर्नवास की व्यवस्था करता है।जो 2007 में शुरु हुआ और पंजीकृत 2011 में हुआ। संस्था भारत की झीलों में जैवविविधता के पुर्नसंरक्षण के लिये विशेषतः जाना जाता है। संस्धा वन्यजीवों के साथ-साथ गाँवों को भी विकसित करने का काम करती है। संस्था का ज्यादातर काम स्वयंसेवकों के सहयोग से होता है। झीलों को साफ करने का काम संस्था द्वारा हर रविवार को चलाया जाता है। साल 2014 तक देश की 39 झीलों की सफाई संस्था द्वारा की जा चुकी है। जिसमें मदमबक्कम, कैजहकाट्टाई, नारायनपुरम् झीलें चैन्नै में, सेल्वाचिन्तामनि झील कोयम्बटूर में, कपरा, अलवाल, गुरुनाधाम चेरुवू झीलें हैदरावाद में स्थित हैं।
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http://www.efivolunteer.com/

स्वच्छ भारत अभियान

स्वच्छ भारत

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भारत सरकार द्वारा आरम्भ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना है। यह अभियान महात्मा गाँधी के जन्मदिवस 02 अक्टूबर 2014 को आरम्भ किया गया।

 क्या है लक्ष्य

साल 2019 (गांधीजी की 150वीं जयंती) तक हर गांव, शहर, कस्‍बे को साफ करना। पक्‍के टॉयलेट, पीने का साफ पानी, कचरा निपटाने की ठोस व्‍यवस्‍था करना।

कितना खर्च होगा

1.96 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसमें से 1.34 लाख करोड़ गांवों में 11 करोड़ पक्‍का टॉयलेट बनवाने पर खर्च होंगे। 62 हजार करोड़ खर्च कर शहरी इलाकों में 5.1 लाख पब्लिक टॉयलेट्स भी बनाए जाने हैं।

 कितनी बड़ी है चुनौती 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक शहरी लोग रोज करीब 1.3 लाख टन ठोस कचरा पैदा करते हैं। साल में 4.70 करोड़ टन। यह आंकड़ा सिर्फ 70 फीसदी शहरी इलाकों का है जहां नगर निगम या स्‍थानीय निकाय काम करते हैं। बाकी शहरी इलाकों को भी शामिल कर लें तो 6.80 करोड़ टन कचरा हर साल शहरी लोग पैदा करते हैं।

टेरी ने 1998 में एक आकलन जारी किया था। इसमें बताया गया था कि वर्ष 2011 तक देश में कचरे की मात्रा इतनी होगी कि 2.2 लाख फुटबॉल के मैदानों को 9 मीटर (27 फीट) की ऊंचाई तक भरा जा सकता है।

शहरों में जितना कचरा पैदा होता है, उसका एक-तिहाई ही उठाया जाता है। इनमें से केवल 18 फीसदी को ही रीसाइकिल किया जाता है। बाकी कचरा ऐसे ही खुले में डाल दिया जाता है।

 प्रसिद्ध लोगों को न्‍योता

नरेंद्र मोदी ने कार्यक्रम के दौरान क्रिकेटर और भारत रत्‍न सचिन तेंडुलकर और अभिनेता सलमान खान सहित नौ लोगों को सफाई अभियान से जुड़ने का न्‍योता दिया। इसके बाद पीएम ने राजपथ से ‘स्वच्छ भारत मिशन’ पदयात्रा को हरी झंडी दिखाई। पीएम ने दिन की शुरुआत राजघाट और विजयघाट पर राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी और लाल बहादुर शास्‍त्री को श्रद्धा सुमन अर्पित कर की थी। इसके बाद वह वाल्‍मीकि मंदिर स्थित वाल्‍मीकि बस्‍ती में पहुंचे थे और झाड़ू लगाया था। यहां आने से पहले उन्‍होंने मंदिर मार्ग थाने का औचक निरीक्षण किया था।

स्‍वच्‍छता की दिलाई शपथ
अभियान को शुरू करने के साथ पीएम ने लोगों को स्‍वच्‍छता की शपथ दिलाई। इसमें कहा गया, “मैं शपथ लेता हूं कि मैं स्‍वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा। मैं शपथ लेता हूं कि हर वर्ष 100 घंटे यानी हर सप्ताह दो घंटे श्रमदान कर स्वच्छता के लिए काम करूंगा। मैं ना गंदगी करूंगा, ना किसी और को करने दूंगा। मैं गांव-गांव और गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करूंगा। मैं आज जो शपथ ले रहा हूं, वह अन्य सौ लोगों से भी करवाऊंगा। मुझे मालूम है कि स्वच्छता की तरफ बढ़ाया गया मेरा एक कदम पूरे भारत देश को स्वच्छ बनाने में मदद करेगा।”

सचिन, सलमान सहित 9 लोगों को निमंत्रण

प्रधानमंत्री ने कहा कि सफाई का काम सिर्फ सरकार, मंत्रियों और समाजसेवकों का ही नहीं है, बल्कि इसमें जनसामान्य की भागीदारी अहम है। उन्‍होंने कहा, “मैंने नौ लोगों को सार्वजनिक जगहों पर सफाई की शुरुआत करने का न्‍योता दिया है। ये लोग हैं- गोवा की गवर्नर मृदुला सिन्हा, भारत रत्न सचिन तेंडुलकर, बहन प्रियंका चोपड़ा, कांग्रेस नेता शशि थरूर, सलमान खान, अनिल अंबानी, कमल हासन, बाबा रामदेव और तारक मेहता का उल्टा चश्मा सीरियल की पूरी टीम। ये नौ लोग अपने नौ दोस्‍तों को निमंत्रित करें। इस तरह सफाई अभियान की एक चेन बन जाएगी।”

जल प्रदूषण,कारण, प्रभाव और बचने के उपाय

जल प्रदूषण

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जल भी पर्यावरण का अभिन्न अंग है। मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। मानव स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ जल का होना नितांत आवश्यक है। जल की अनुपस्थित में मानव कुछ दिन ही जिन्दा रह पाता है क्योंकि मानव शरीर का एक बड़ा हिस्सा जल होता है। अतः स्वच्छ जल के अभाव में किसी प्राणी के जीवन की क्या, किसी सभ्यता की कल्पना, नहीं की जा सकती है। यह सब आज मानव को मालूम होते हुए भी जल को बिना सोचे-विचारे हमारे जल-स्रोतों में ऐसे पदार्थ मिला रहा है जिसके मिलने से जल प्रदूषित हो रहा है। जल हमें नदी, तालाब, कुएँ, झील आदि से प्राप्त हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण आदि ने हमारे जल स्रोतों को प्रदूषित किया है जिसका ज्वलंत प्रमाण है कि हमारी पवित्र पावन गंगा नदी जिसका जल कई वर्षों तक रखने पर भी स्वच्छ व निर्मल रहता था लेकिन आज यही पावन नदी गंगा क्या कई नदियाँ व जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। यदि हमें मानव सभ्यता को जल प्रदूषण के खतरों से बचाना है तो इस प्राकृतिक संसाधन को प्रदूषित होने से रोकना नितांत आवश्यक है वर्ना जल प्रदूषण से होने वाले खतरे मानव सभ्यता के लिए खतरा बन जायेंगे।

 जल प्रदूषण के कारण

  1. औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप आज कारखानों की संख्या में वृद्धि हुई है लेकिन इन कारखानों को लगाने से पूर्व इनके अवशिष्ट पदार्थों को नदियों, नहरों, तालाबों आदि किसी अन्य स्रोतों में बहा दिया जाता है जिससे जल में रहने, वाले जीव-जन्तुओं व पौधों पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही जल पीने योग्य नहीं रहता और प्रदूषित हो जाता है।
    2.    जनसंख्या वृद्धि से मलमूत्र हटाने की एक गम्भीर समस्या का समाधान नासमझी में यह किया गया कि मल-मूत्र को आज नदियों व नहरों आदि में बहा दिया जाता है, यही मूत्र व मल हमारे जल स्रोतों को दूषित कर रहे हैं।
    3.    जब जल में परमाणु परीक्षण किये जाते हैं तो जल में इनके नाभिकीय कण मिल जाते हैं और ये जल को दूषित करते हैं।
    4.    गाँव में लोगों के तालाबों, नहरों में नहाने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने बर्तन साफ करने आदि से भी ये जल स्रोत दूषित होते हैं।
    5.    कुछ नगरों में जो कि नदी के किनारे बसे हैं वहाँ पर व्यक्ति के मरने के बाद उसका शव पानी में बहा दिया जाता है। इस शव के सड़ने व गलने से पानी में जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है, जल सड़ाँध देता है और जल प्रदूषित होता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव

1.समुद्रों में होने परमाणु परीक्षण से जल में नाभिकीय कण मिलते हैं जो कि समुद्री जीवों व वनस्पतियों को नष्ट करते हैं और समुद्र के पर्यावरण सन्तुलन को बिगाड़ देते हैं।
2.प्रदूषित जल पीने से मानव में हैजा, पेचिस, क्षय, उदर सम्बन्धी आदि रोग उपन्न होते हैं।
दूषित जल के साथ ही फीताकृमि, गोलाकृमि आदि मानव शरीर में पहुँचते हैं जिससे व्यक्ति रोगग्रस्त होता है।
4. जल में कारखानों से मिलने वाले अवशिष्ट पदार्थ, गर्म जल, जल स्रोत को दूषित करने के साथ-साथ वहाँ के वातावरण को भी गर्म करते हैं जिससे वहाँ की वनस्पति व जन्तुओं की संख्या कम होगी और जलीय पर्यावरण असन्तुलित हो जायेगा।
5. स्वच्छ जल जो कि सभी सजीवों को अति आवश्यक मात्रा  में चाहिए, इसकी कमी हो जायेगी।

जल प्रदूषण से बचने के उपाय

  1. कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ इन अवशिष्ट पदार्थों को निष्पादन से पूर्व दोषरहित किया जाना चाहिए। 2. नदी या अन्य किसी जल स्रोत में अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए।
    3.    कार्बनिक पदार्थों के निष्पादन से पूर्व उनका आक्सीकरण कर दिया जाए।
    4.    पानी में जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थ, जैसे ब्लीचिंग पाउडर आदि का प्रयोग करना चाहिए।
    5.    अन्तर्राष्टीय स्तर पर समुद्रों में किये जा रहे परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिए।
    6 समाज व जन साधारण में जल प्रदूषण के खतरे के प्रति चेतना उत्पन्न करनी चाहिए।

वायु प्रदूषण कारण, प्रभाव और बचाव के उपाय

 वायु प्रदूषण

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 वायुमण्डल पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। मानव जीवन के लिए वायु का होना अति आवश्यक है। वायुरहित स्थान पर मानव जीवन की कल्पना करना करना भी बेकार है क्योंकि मानव वायु के बिना 5-6 मिनट से अधिक जिन्दा नहीं रह सकता। एक मनुष्य दिन भर में औसतन 20 हजार बार श्वास  लेता है। इसी श्वास के दौरान मानव 35 पौण्ड वायु का प्रयोग करता है। यदि यह प्राण देने वाली वायु शुद्ध नहीं होगी तो यह प्राण देने के बजाय प्राण ही लेगी।

पुराने समय में मानव के आगे वायु प्रदूषण जैसी समस्या सामने नहीं आई क्योंकि प्रदूषण का दायरा सीमित था साथ ही प्रकृति भी पर्यावरण को संतुलित रखने का लगातार प्रयास करती रही। उस समय प्रदूषण सीमित होने के कारण प्रकृति ही संतुलित कर देती थी लेकिन आज मानव विकास के पथ पर अग्रसर है और उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है। मानव ने अपने औद्योगिक लाभ हेतु बिना सोचे-समझे प्राकृतिक साधनों को नष्ट किया जिससे प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ने लगा और वायुमंडल भी इससे न बच सका। वायु प्रदूषण केवल भारत की समस्या हो ऐसी बात नहीं, आज विश्व की अधिकांश जनसंख्या इसकी चपेट में है।

हमारे वायुमण्डल में नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड आदि गैस एक निश्चित अनुपात में उपस्थित रहती हैं। यदि इनके अनुपात के सन्तुलन में परिवर्तन होते हैं तो वायुमण्डल अशुद्ध हो जाता है, इसे अशुद्ध करने वाले प्रदूषण कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, हाइड्रोकार्बन, धूल मिट्टी के कण हैं जो वायुमण्डल को प्रदूषित करते हैं।

 वायु प्रदूषण के कारण

 विश्व की बढ़ती जनसंख्या ने प्राकृतिक साधनों का अधिक उपयोग किया है। औद्योगीकरण से बड़े-बड़े शहर बंजर बनते  जा रहे हैं। इन शहरों व नगरों की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, इससे शहरों व नगरों में आवास-समस्या उत्पन्न हो गई है। इस आवास-समस्या को सुलझाने के लिए लोगों ने बस्तियों का निर्माण किया और वहाँ पर जल-निकासी, नालियों आदि की समुचित व्यवस्था नहीं होने से गन्दी बस्तियों ने वायुप्रदूषण को बढ़ावा दिया है। उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, कृषि में रासायनों के उपयोग से भी वायु प्रदूषण बढ़ा है। साथ ही कारखानों की दुर्घटना भी भयंकर होती है। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने की दुर्घटना गत वर्षों की बड़ी दुर्घटना थी जिससे एक ही समय हजारों व्यक्तियों को असमय मरना पड़ा था और जो जिन्दा रहे वो भी  विकंलाग और विकृत होकर इस दुर्घटना या गैस त्रासदी की कहानी बताते हैं।

आवागमन के साधनों की वृद्धि आज बहुत अधिक हो रही है। इन साधनों की वृद्धि से इंजनों, बसों, वायुयानों, स्कूटरों आदि की संख्या बहुत बढ़ी है। इन वाहनों से निकलने वाले धुएँ वायुमण्डल में लगातार मिलते जा रहे हैं जिससे वायुमण्डल में असन्तुलन हो रहा है।
वनों की कटाई से वायु प्रदूषण बढ़ा है क्योंकि वृक्ष वायुमण्डल के प्रदूषण को निरन्तर कम करते हैं। पौधे हानिकारक प्रदूषण गैस कार्बन डाई आक्साइड को अपने भोजन के लिए ग्रहण करते हैं और जीवनदायिनी गैस आक्सीजन प्रदान करते हैं, लेकिन मानव ने आवासीय एवं कृषि सुविधा हेतु इनकी अन्धाधुन्ध कटाई की है और हरे पौधों की कमी होने से वातावरण को शुद्ध करने वाली क्रिया जो प्रकृति चलाती है, कम हो गई है।
परमाणु परीक्षण से नाभिकीय कण वायुमण्डल में फैलते हैं जो कि वनस्पति व प्राणियों पर घातक प्रभाव डालते हैं।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

  1. यदि वायुमण्डल में लगातार अवांछित रूप से कार्बन डाइ आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन, आक्साइड, हाइड्रो कार्बन आदि मिलते रहें तो स्वाभाविक है कि ऐसे प्रदूषित वातावरण में श्वास लेने से श्वसन सम्बन्धी बीमारियाँ होंगी। साथ ही उल्टी घुटन, सिर दर्द, आँखों में जलन आदि बीमारियाँ होनी सामान्य बात है।2.    वाहनों व कारखानों से निकलने वाले धुएँ में सल्फर डाइ आक्साइड की मात्रा होती है जो कि पहले सल्फाइड व बाद में सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का अम्ल) में परिवर्तित होकर वायु में बूदों के रूप में रहती है। वर्षा के दिनों में यह वर्षा के पानी के साथ पृथ्वी पर गिरती है जिसमें भूमि की अम्लता बढ़ती है और उत्पादन-क्षमता कम हो जाती है। साथ ही सल्फर डाइ आक्साइड से दमा रोग हो जाता है।3.    कुछ रासायनिक गैसें वायुमण्डल में पहुँच कर वहाँ ओजोन मण्डल से क्रिया कर उसकी मात्रा को कम करती हैं। ओजोन मण्डल अन्तरिक्ष से आने वाले हानिकारक विकरणों को अवशोषित करती है। हमारे लिए ओजोन मण्डल ढाल का काम करता है लेकिन जब ओजोन मण्डल की कमी होगी तब त्वचा कैंसर जैसे भयंकर रोग से ग्रस्त हो सकती है।

    4.    वायु प्रदूषण से भवनों, धातु व स्मारकों आदि का क्षय होता है। ताजमहल को खतरा मथुरा तेल शोधक कारखाने से हुआ है।
    5.    वायुमण्डल में आक्सीजन का स्तर कम होना भी प्राणियों के लिए घातक है क्योंकि आक्सीजन की कमी से प्राणियों को श्वसन में बाधा आयेगी।
    6.    कारखानों से निकलने के बाद रासायनिक पदार्थ व गैसों का अवशोषण फसलों, वृक्षों आदि पर करने से प्राणियों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय

  1. कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित करना चाहिए, साथ ही ऐसी तकनीक उपयोग में लाने के लिए बाध्य करना चाहिए जिससे कि धुएँ का अधिकतर भाग अवशोषित हो और अवशिष्ट पदार्थ व गैसें अधिक मात्रा में वायु में न मिल पायें।2.    जनसंख्या शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाए ताकि जनसंख्या वृद्धि को बढ़ने से रोका जाए।
    3.    शहरी करण की प्रक्रिया को रोकने के लिए गाँवों व कस्बों में ही रोजगार व कुटीर उद्योगों व अन्य सुविधाओं को उपलब्ध कराना चाहिए।4.    वाहनों में ईंधन से निकलने वाले धुएँ को ऐसे समायोजित, करना होगा जिससे की कम-से-कम धुआँ बाहर निकले।
    5.    निर्धूम चूल्हे व सौर ऊर्जा की तकनीकि को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    6.    ऐसे ईंधन के उपयोग की सलाह दी जाए जिसके उपयोग करने से उसका पूर्ण आक्सीकरण हो जाय व धुआँ कम-से-कम निकले।

    7.    वनों की हो रही अन्धाधुन्ध अनियंत्रित कटाई को रोका जाना चाहिए। इस कार्य में सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाएँ व प्रत्येक मानव को चाहिए कि वनों को नष्ट होने से रोके व वृक्षारोपण कार्यक्रम में भाग ले।
    8.    शहरों-नगरों में अवशिष्ट पदार्थों के निष्कासन हेतु सीवरेज सभी जगह होनी चाहिए।
    9.    इसको पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत की जानी चाहिए।
    10.    इसकी जानकारी व इससे होने वाली हानियों के प्रति मानव समाज को सचेत करने हेतु प्रचार माध्यम जैसे दूरदर्शन, रेडियो पत्र-पत्रिकाओं आदि के माध्यम से प्रचार करना चाहिए।

आंदोलन की है…जरूरत

भारत में पर्यावरण आंदोलन मूल रूप से लोगों के जल,जंगल और जमीन से जुड़े परम्परागत अधिकारो को पुन: स्थापित करने के संघर्ष से जुड़े हैं। ये आंदोलन आधुनिक विकास के मॉडल की आलोचना ही नहीं करते बल्कि विकल्प भी पेश करते हैं। ऐसा विकल्प जो विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी प्रदान करता है, लोगों के परम्परागत अधिकारों की रक्षा करता है तथा आम लोगों की विकास प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करता है। इन आंदोलनों की एक ओर विशेषता यह भी है कि इन्होने जन आंदोलनों का रूप ग्रहण किया है जिसमें आम जनता खासकर महिलाओं तथा युवकों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। भारत में पर्यावरण आंदोलन गांधीवादी तकनीकों-अहिंसा और सत्याग्रह के प्रयोग को दर्शाते हैं।
पर्यावरण आंदोलन विकास विरोधी आंदोलन नहीं हैं। ये केवल विकास को पर्यावरण संरक्षण आधारित करने, विकास परियोजनाओं को सामाजिक तथा मानवीय मूल्य आधारित बनाने तथा आम आदमी के परंपरागत अधिकारों के संरक्षण तथा विकास योजनाओं में उसकी भागीदारी का समर्थन करते हैं। ये आंदोलन भारतीय राज्य के विकास की उन नीतियों पर प्रश्नचिंह लगाते हैं जो आम आदमी से उसके संसाधनों को छीनकर विशिष्ट वर्ग के हितों को संरक्षित कर रहा है तथा जो अंतत: पर्यावरणीय विनाश को प्रोत्साहित कर रहा है। अत: पर्यावरण आंदोलन पर्यावरण विनाश तथा संसाधनों के असमान वितरण को समाप्त कर एक पर्यावरणीय लोकतंत्र  स्थापित करने का प्रयास हैं। ये न केवल भारत बल्कि विश्व पर्यावरण संकट का भी एक स्थायी उत्तर प्रदान करते हैं।

टिहरी बांध विरोधी आंदोलन

टिहरी बांध उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भागीरथी और भिलंगना नदी पर बना ऐशिया का सबसे बड़ा तथा विश्व का पांचवा सर्वाधिक ऊँचा (अनुमानित ऊँचाई 260.5 मी०) बांध है। इस बांध का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करना तथा पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण करना है। इसकी स्वीकृति 1972 में योजना आयोग ने दी थी। टिहरी जलविद्युत परियोजना  से अभी प्रतिवर्ष 1000 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है जो दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों के लोगों को बिजली तथा पेयजल की सुविधा उपलब्ध करा रहा है। 2016 में जब ये अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करेगा तो 2400 मेगावाट तक बिजली उत्पादन होगा।

टिहरी बांध,चित्र साभार-economic times

टिहरी बांध,चित्र साभार-economic times

इस परियोजना का सुंदरलाल बहुगुणा तथा अनेक पर्यावरणविदों ने कई आधारों पर विरोध किया है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज द्वारा टिहरी बांध के मूल्याकंन की रिपोर्ट के अनुसार यह बांध टिहरी कस्बे और उसके आसपास के 23 गांवों को पूर्ण रूप से तथा 72 अन्य गांव को आंशिक रूप से जलमग्न कर देगा, जिससे 85600 लोग विस्थापित हो जाएंगे। इस परियोजना से 5200 हेक्टेयर भूमि, जिसमें से 1600 हैक्टेयर कृषि भूमि होगी जो जलाशय की भेंट चढ़ जाएगी। अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि टिहरी बांध ‘गहन भूकम्पीय सक्रियता’ के क्षेत्र में आता है और अगर रियेक्टर पैमाने पर 8 की तीव्रता से भूकंप आया तो टिहरी बांध के टूटने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो उत्तरांचल सहित अनेक मैदानी इलाके डूब जाएंगे।
टिहरी बांध विरोधी आंदोलन ने इस परियोजना से क्षेत्र के पर्यावरण, ग्रामीण जीवन शैली, वन्यजीव, कृषि तथा लोक-संस्कृति को होने वाली क्षति की ओर लोगों का ध्यान आकृर्षित किया है। उम्मीद की जाती है कि इसका सकाराट्टमक प्रभाव स्थानीय पर्यावरण की रक्षा के साथ-2 विस्थापित लोगों के पुनर्वास में मानवीय सोच के रूप में देखने को मिलेगा।

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का पर्यावरण पर प्रभाव

मोदी सरकार ने हाल ही में भूमि अधिग्रहण बिल में कुछ और संशोधन कर इसे पेश किया। सवाल यह उठता है की पर्यावरण को लेकर मोदी सरकार ने इस विधयेक में क्या बातें कही हैं? क्या मोदी सरकार केवल विकास के नाम पर पर्यावरण से खिलवाड़ कर रही है या फिर उसे पर्यावरण की थोड़ी बहुत चिंता भी है?

कुछ महीने पहले उद्योगों के विकास के नाम पर पर्यावरण मंत्रालय ने एक ऐसे कानून में बदलाव किया था जिसका पर्यावरण और जैव विविधता पर बुरा असर पड़ने की पूरी सम्भावना है| पहले इस कानून के अंतर्गत किसी भी राष्ट्रीय उद्यान और जैव विविधता क्षेत्रों के 10 किमी. की दूरी के बाद ही फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति थी लेकिन मोदी सरकार ने इस कानून में बदलाव करते हुए इस सीमा को 5 किमी. कर दिया है| इस कदम से इन क्षेत्रों में बसने वाले जीव जंतुओं और पेड़ पौधों पर बुरा असर पड़ेगा| कुछ विशेष उत्पादन करने वाली कंपनियां जैसे पेंट,चमड़ा, इत्यादि द्वारा बड़े पैमाने पर ऐसे पदार्थों का कचरा भी उत्पादित करतीं हैं जिनका पर्यावरण पर बेहद बुरा असर पड़ता है|

अब बात की जाए नए भूमि अधिग्रहण बिल की जिसके अंतर्गत नए संशोधन किये गए हैं| एक  संशोधन के अंतर्गत

पांच क्षेत्रो को सामाजिक और पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के अध्ययन  से दूर रखा गया है जो की निम्नलिखित हैं:

  1. सैन्य मकसद से किया गया अधिग्रहण
  2. गावों में ढांचागत सुविधाएं बढ़ने सम्बन्धी योजना के लिए अधिग्रहण
  3. गरीबों के लिए आवास योजना के लिए अधिग्रहण
  4. पब्लिक प्राइवेट प्रोजेक्ट के तहत चुने गए इंडस्ट्रियल करिडोर्स
  5. अन्य ढांचागत परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण

अब सवाल यह उठता है की जब सरकार इस बात के अध्ययन के लिए ही तैयार नहीं है की उद्योगों को बढ़ावा देने से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है तो वह पर्यावरण को बचने सम्बन्धी कार्यों का क्रियान्वयन कैसे करेगी? संयुक्त राष्ट्र के हालिया अध्ययन से यह बात साफ़ हुई है की औद्योगिक क्रांति से पहले और बाद के प्रदूषण स्तर में ज़मीन आसमान का फर्क देखा गया है। औद्योगिक क्रांति के बाद से प्रदूषण स्तर में 250 प्रतिशत से भी अधिक की बढ़ोतरी आई है।

निष्कर्ष इस बात से निकला जा सकता है की सरकार को पर्यावरण से सम्बंधित कुछ कड़े और योजनाबद्ध तरीके खोजने होंगे| कागज़ी कार्यवाही के उठकर इन योजनाओ के क्रियान्वयन में सरकार को खासा ध्यान देने की ज़रुरत है| इस क्रम में नागरिकों की भागीदारी को अलग नहीं रखा जा सकता है। पर्यावरण सम्बन्धी जान जागरण कार्यक्रम के तहत देश के नागरिको की भागीदारी की भी आवश्यकता है जिससे सतत विकास के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।